जगण दै
वासतै नै
आप री मोय,
मत कर चूचकाड़या
घर‘र गुवाड़या
कोनी ठाकर रो गढ
जे सिलगग्या
छानां‘र झूपां
कोनी बुझै अलीतो
बिनां हुयां
राख री ढिगल्यां,
कठै मिलसी
काल रै बरस में
पन्नी‘र पंसुरो
मूंज‘र गोबर,
सुण‘र डोकरै री बात
हंसै खीं खीं टींगर
बे कोनी जाणै
के हुवै डर ?
आ इसी उमर
लागै जद
अणभव स्यूं आछो
इचरज ।