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टुकड़ा भर आसमान / विशाखा मुलमुले

मुझे हासिल टुकड़ा भर आसमान में
मैंने देखना चाहा सूर्योदय , सूर्यास्त
देखना चाहा चंद्रोदय
उसकी घटत - बढ़त

चाहत कि ,
चन्द्र जब सबसे नजदीक हो धरा के
तब बिन सीढ़ी लगाए छू सकूँ उसे
न हो तो निहार ही लूँ उसे भर आँख

आस रखी उत्तर में दिख जाए ध्रुव तारा
सांझ ढले दिख जाए चमकीला शुक्र तारा
जब कभी बृहस्पति के नज़दीक से गुजरे शनि
तो देख लूँ उन्हें अपने ही घर की सीध से

कहने को क्षेत्रफल में अलां - फलां स्क्वायर फुट का घर मेरा
तो हिसाब से उतनी ही बड़ी मिलनी चाहिए थी छत मुझे
पर महानगर की गुजर - बसर में
हासिल मुझे खिड़की से दिखता टुकड़ा भर आसमान