टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
करने लगती धींगा-मुस्ती
लगा चौकडी खाट के नीचे
घर भर में कर जाती गश्ती
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....
टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
करने लगती धींगा-मुस्ती
लगा चौकडी खाट के नीचे
घर भर में कर जाती गश्ती
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....