उगलै लत्तर में कानी, लागलै पत्तर में पानी,
हवा में मारै पेंग-अरे, काँही टुटियोनि जाय ।
मुस्कै छै अनजाने मंद, गलबांही देनें छै गंध,
टेबोॅ में रौदा के लू, अरे, काँही लुटियोनि जाय ।
उमगै कोयलिया के कूक, हिरदय में टहकारै हूक,
शब्दोॅ के बाढ़ोॅ में लीक, अरे काँही भाँसियोनि जाय ।
धुरदा पर धुरदा पंथी अजुरदा
सीसा रं चेहरा काँहीं उतरियोनि जाय ।
आस लगैनें होतै मैया, बुतरू छै भारी खेलबैया,
बेर भेॅ गेलै खेलतें-खेलतें अरे, काँही भागियोनि जाय ।