Last modified on 16 अप्रैल 2018, at 19:33

टूटा शीश चमका / सुनीता जैन

सुबह हुई,
दिन
शुरू हुआ-
डर लगा

तुम आए
चारों ओर
निमंत्रण था-
डर लगा

सहसा धूप खिली,
टूटा शीशा
चमका-
डर लगा।