टेसू आज प्रसंग हुए हैं,
मन गाए,
तन चंग हुए हैं।
अनायास
छेड़े आदिम धुन,
रंगभूमि में
उतरे फागुन;
तप, जप जोग
प्रथम मासे ही
भंग हुए हैं।
अंक-अंक
दिक्-काल, हवाएँ,
कुहकीं कूकीं
मालविकाएँ;
गीत तुका के
रंगा-रंग अभंग हुए हैं।
भीगे ये दामन वो चोली,
दास कबीरा
खेले होली;
ओछे पड़े रदीफ
क़ाफिये तंग हुए हैं।