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ट्रांजिट / रमेश क्षितिज / राजकुमार श्रेष्ठ

एअरपोर्ट के अन्दर
ट्रांजिट में चमक रही
झिलमिल बत्तियों की रौशनी में

हाथ में प्रियतम की धुँधली तस्वीर लिए
सफ़ेद बालों वाली इक बूढ़ी औरत
सुना रही है रात में मुझे अपनी फ़साना-ए-इश्क़
झुर्री भरे गालों पर गिर चुकी है अश्क की इक बूँद

कहती है – तीस वर्ष पहले
अलग देश, भाषा और संस्कृति वाले
हम मिले थे एक ही जगह
और साथ-साथ चलते न जाने कब बँध गए थे गहरे प्रेम में

जुदाई की पहली रात
गर्म अश्कों से भिगोया था इक दूजे के सीने को

ट्रांजिट में बदले थे अन्तिम चुम्बन और छोटे प्रेमपत्र
हाँ, यही तो है उसने उस वक़्त सप्रेम भेँट की नीली डायरी !

कहती है – जीवन भर वैसे ही सरसब्ज़ रहा दिल में प्यार
तीस वर्ष बाद मिलकर हमने सुनाया एक-दूसरे को –
कैसे बसर हुई ज़िन्दगी
याद की – छोटी-छोटी तकरारें और अगले जन्म
साथ जीने के वादे
रोते-रोते हँसे फिर हँसते-हँसते रोए हम अचानक !

मानो एक साथ ही धूप भी निकली हुई हो
और मुसलसल हो रही है झड़ी
मैं मौन देखते रहता हूँ – उसकी भीगी पलकें
और थोड़ी-थोड़ी देर में मुस्कुराते होंठ

परवाज़ के लिए अभी काफ़ी है वक़्त !

मूल नेपाली भाषा से अनुवाद : राजकुमार श्रेष्ठ