कंक्रीट के जंगल में
संवेदना के पत्तों से विहीन
अपनी जड़ों से उखड़ा हुआ
अपनी अकड़ में अकड़ा हुआ है
ठूंठ सा आदमी.
धूल भरी हवा और
प्रदूषित जल से सिंचित
नोटों की खाद को तरसता
नोटों से ही औरों को परखता
अपने ही घर में
अजनबी सा रहता
खुद से ही बेजार है
ठूंठ सा आदमी!