म्हूं या बात
आछी तरै जाणूं के’
थां हर बात पे
पूरबजां री गरवीली
याद रा मालीपना
लपेटता थंका
हरीस चन्द्र ने पण
सरम री कोठरी मैं
धकेलता थकां
सौगन खाओला
अर हमेस ज्यूं
फेर अेक बार
धरमराज रा अवतार
बण जाओला
या बात थां पण
आछी तरै जाणो के’
म्हाणो गुवाड़ी में
धरमधजा, फगत
थाणों कारणै ईज
फैरावे है
अर अस्ये हर अेक
सुभ मौके म्हारो मन
पुरवाई जिस्यो
लैरावे है
पण आज जद
थां फेर
सौगन खाई है
म्हारे मन में
खुसी री जग्यां
चिंता समाई है
चिता रो कारण
म्हूं जाणूं हूँ
आज थाणै सौगन री
आखरी बारी है
सौगन-खावणिया रै
सुरग में, तिल तक
धर नीं सकां
तो थैं कठै जाओला ?