जिस सच को मैं पहले
बेफ़िक्री में कहीं भी कह देता था
अब उसे कहने से रोकना होगा ख़ुद को
या सच बोलने से पहले ही मुझे डरना होगा
कि कहीं कोई है तो नहीं आसपास
कि कुछ देर बाद झण्डे लेकर नारे लगाते हुए
एक समूह आकर घेर तो नहीं लेगा मुझे
न्याय की माँग इतनी ख़तरनाक तो नहीं हो जाएगी
कि मुझे ही फँसा दिया जाए उसी क़ानून की किसी धारा में
जिसकी रक्षा के लिए मैं पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हूँ
मेरा भारत देश जो मेरी रगों में बहता है रक्त के रूप में निरन्तर
फेंफड़ों में जो साँस है आजीवन
देश का शरीर कुतर रहे चूहों को ललकारने से
क्रुद्ध होकर मुझे ही तो नहीं कुतर डालेंगे चूहे
मुझे डरना होगा ऐसी हर ललकार के साथ
अपने ही अधिकारों की माँग करते हुए
मुझे डरना होगा व्यवस्था से जो ताक़तवर है
जन न्याय के लिए मेरी आवाज़
मुझे कटघरे तक ले जा सकती है
इस लोकतन्त्र में लोक के लिए लड़ने से पहले
मुझे ज़रूर डरना होगा
क्योंकि अब तन्त्र की सहनशीलता की अपनी सीमा है
इस समूची लड़ाई में नैराश्य को हराती हुई
एक अच्छी बात यह है
कि इसमें डरने वालों की तादात बहुत ज़्यादा है
और दूसरी तरफ़ जिनसे हमारा सामना है
भले ही वे व्यवस्था पर काबिज़ और शक्तिशाली हैं
पर मुठ्ठीभर हैं।