लोहे जैसी पीठ मगर
कछुआ फिर भी नहीं निडर।
गर्दन बाहर करता है,
लेकिन जब भी डरता है,
अपने में खो जाता है,
छोटा-सा हो जाता है।
डरते रहते हैं डरपोक,
वीर बढ़ा करते बेरोक।
लोहे जैसी पीठ मगर
कछुआ फिर भी नहीं निडर।
गर्दन बाहर करता है,
लेकिन जब भी डरता है,
अपने में खो जाता है,
छोटा-सा हो जाता है।
डरते रहते हैं डरपोक,
वीर बढ़ा करते बेरोक।