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डरा आदमी / उमा शंकर सिंह परमार

डरी सड़कें
डरा आदमी
हवाएँ बता रहीं है लाशों का पता

कल के सियार
शेर में तब्दील
ख़ूनी जबड़ों में दबाकर
विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने का प्रमाणपत्र
ख़ुद को संविधान का
रक्षक घोषित कर चुकें हैं
 
डरा आदमी
नहीं समझ पा रहा
ईमानदार, जनप्रिय, विकासपुरुष,
होने के शब्दशास्त्र में
फूहड़ता की पराकाष्ठा है