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डायरी / संतोष श्रीवास्तव

मैंने अपनी पीड़ा
छुपा कर रखी है
और मुस्कुराती हूं
दिनों की डायरी की तरफ़
लपकती हूँ

होठों पर लगाती हूं
चमकीली हंसी की परत
अपनी पलकों पर
चमकीली सुरमई
खुशहाल रोशनी

बदन पर सफेदी ओढ़ती हूं
एक मेज की टेक लेकर
महसूसती हूं औरों का दुख

पन्ने खुलते हैं डायरी के
कहीं से झांकता है सूखा गुलाब
दुख के साथ प्रेम
घुलमिल जाता है