Last modified on 5 फ़रवरी 2011, at 00:28

डूबने के भय... / एहतराम इस्लाम


डूबने के भय न ही बचने की चिंताओं में था
जितने क्षण मैं आपकी यादों की नौकाओं में था

थे जुबा वाले हमारे युग में कैसे मानिए
मौन के अतिरिक्त क्या कोई प्रवक्ताओं में था
 
आदमीयत के लिए कोई ठिकाना था कहाँ
पंडितों में धर्म था ईमान मुल्लाओं में था

रेट में तब्दील चट्टानों को होना ही पद
जाने कितना हौसला पुर जोश सरिताओं में था
 
मेरे लंबे कहकहे ठहरे न कोई वाकिया
मुस्कुराना आपका कुछ मुख्य घटनाओं में था


मेरी बातें लोग अपनी जान कर सुनते रहे
कोई आकर्षण तो मेरी शब्द रचनाओं में था

लोग बेहूदा हैं जो कहते हैं पिछडा देश को
फाईलों से जाचिये क्षण क्षण सफलताओं में था

अपने संबंधों पे आ रो लें इसी हीले से हम
तू भी प्रश्नों में घिरा मैं भी समस्याओं में था

उसका भाषण था की मक्कारी का जादू एहतराम
मैं कमीना था की बुजदिल मुग्ध श्रोताओं में था