डूब गया शिवदान नहर में
हुई बावरी माई ।
सुनी ख़बर पर
बदहवास -सी
एक रुलाई फूटी ।
डोल कुएँ में गिरा
हाथ की
रस्सी सहसा छूटी ।
घिरनी घूमी घर्र घरर घर
गिरी पछाड़ लगाई ।
खेतों-खेतों
दौड़े - हाँफे
पकड़ी दिशा नहर की ।
भैया, मेरा भैया
हिलके
टूटी लहर, बहर की ।
गाँव इकट्ठा हुआ घाट पर
लाश नहीं मिल पाई ।
डूब गया शिवदान नहर में
हुई बावरी माई ।
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शिवदान सिंह मेरे सगे भाई थे । उम्र में मुझसे चौदह साल बड़े । उनसे छोटी बहन थी मुझसे सात साल बड़ी । दुर्घटना के वक़्त वे आठ साल के थे , अर्थात , उनके निधन के छह साल बाद हमारा जन्म हुआ । 1938 में हमारे गाँव में छोटी नहर आई थी । 10 - 11 ' चौड़ी और 4 - 5' गहरी । बच्चे उसका अपनी तरह का बड़ा आनन्द लेते थे । नहर आई तो कुछ बच्चे हाथ-पैर मार कर तैरना सीख गए, कुछ नहीं सीख पाए । मेरे भाई भी उन्हीं में से थे जो तैरना सीखने की कवायद में डूब कर मर गए । अम्मा से सुने उसी हादसे से जुड़े सत्य घटना-प्रसंग का काव्य-रूप ।