डोली उठा सुहागिन की यों बोले चार कहार विचार-
रोयेंगे जो रह जायेंगे, जानेवाला जायेगा,
फिर से लौट न पायेगा!
जगत जुआ का खेल पुराना,
पर बाजी का भेद नया।
हार गया जो सबकुछ जीता-
जीता, जो सब हार गया।
यह दुनिया ऐसी महफिल है जहाँ अँधेरे में रौशन
तड़पेंगे जो सुनने आये, गानेवाला जायेगा,
फिर से लौट न पायेगा!
दो दिन के झूठे ममतावश
घर में परदेशी बालम।
पाँच तार की वीणा पर है
झूम रहा सारा आलम।
ऊँचे चाल-चलन की साड़ी, घूँघट की कुलवन्ती नारी
रह जाएगी, पर निर्लज कहलानेवाला जायेगा,
फिर से लौट न पायेगा!
जब तक रहता पास पथिक,
भूलों पर रखते लोग नजर।
पर जब जाता, भूलों पर भी
उसकी आता प्यार उमड़!
रतना की निंदिया खुलती-जब तुलसीदास चले जाते,
रह जायेंगे पथ-दर्शक, भरमानेवाला जायेगा,
फिर से लौट न पायेगा।
दूर गगन की छोड़ अटरिया
जो बूँदें आतीं भू पर,
पाकर उन्हें उमड़ आता है
प्यासी नदियों का अन्तर!
वे बूँदें ही किरणों के रथ पर चढ़कर यों कह जातीं,
रह जायेंगे पानेवाले, लानेवाला जायेगा,
फिर से लौट न पायेगा।
तुम जाओगे, कम न यहाँ का
हो पाएगा रमन-चमन
तुम्हें भुला देंगे सब जैसे
भोर तलक हर रोज सपन।
मोम बना हिमवानों को पश्चिम में सूरज कह जाता-
रह जायेगी रस-धारा, पिघलानेवाला जायेगा,
फिर से लौट न जायेगा।
छूटे तीर लक्ष्य के मर्मी
लौट नहीं घर आते हैं,
नन्हें फूल डाल से झड़कर
तनिक नहीं पछताते हैं।
एक मुसाफिरखाने में दस दिन से ज्यादे कौन रखे,
जानेवाला, आ जल्दी, अब आनेवाला आयेगा।
(2.1.54)