भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चार कुटड़ी ने चार दिवल्या, झग मलोजी।
दिवल्यो लगाड़ुं ती एकली वो नणद बाई।
दलनों दलों ती एकली वो नणद बाई।
पाणिलों भरों ती एकली वो नणद बाई।
- भाभी, ननद से कहती है कि कोठरी के चार खूँट में चार दीपक हैं। घर में दीया
लगाऊँ, पानी भरने जाऊँ अकेली रहती हँू, मेरे साथ में कोई नहीं है।