Last modified on 31 अगस्त 2010, at 12:28

ढाई आखर / ओम पुरोहित ‘कागद’

उस ने
वह पूरी किताब पढ़ ली
अब वह
पूरी किताब है
मगर
उसे
आज तक
कोई पाठक नहीं मिला।

उस ने
जो किताब पढ़ी थी
उसे अब तक
दीमक चाट चुकी होगी
लेकिन
वह दीमक के लिए नहीं है
खुल जाएगा
एक दिन
सब के सामने
और
बंचवा देगा
अपने ढाई आखर सब को।