ढालता रहता वह अविराम,
उमर पात्रों में मदिराधार,
सुनहले स्वप्नों का मधु फेन
हृदय में उठता बारंबार!
डूबते हम से तुम से, प्राण,
सहस्रों उसमें बिना विचार!
भरा रहता साक़ी का जाम,
बिगड़ते बनते शत संसार!
ढालता रहता वह अविराम,
उमर पात्रों में मदिराधार,
सुनहले स्वप्नों का मधु फेन
हृदय में उठता बारंबार!
डूबते हम से तुम से, प्राण,
सहस्रों उसमें बिना विचार!
भरा रहता साक़ी का जाम,
बिगड़ते बनते शत संसार!