हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी
काहे से गाऊं राधे
काहे से बजाऊं राधे
काहे से लाऊं गय्या हेरी जी
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी
मुख से गाओ रामा
हाथों से बजाओ रामा
सीटी से लाओ गय्या हेरी जी
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी
सोने की नांही रामा
चांदी की नांही रामा
हरे हरे बांस की पोरी जी
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी
तेरी तो बंसी रामा
वो धरी है ताक पै
मेरे सिर ला देयी चोरी जी
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी