Last modified on 7 मई 2009, at 22:45

त'अर्रुफ़ / मजाज़ लखनवी

ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैं|
जिन्स-ए-उल्फ़त का तलबग़ार हूँ मैं|

इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी,
फ़ितना-ए-अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं|

छेड़ती है जिसे मिज़राब-ए-अलम,
साज़-ए-फ़ितरत का वही तार हूँ मैं|

ऐब जो हाफ़िज़-ओ-ख़य्याम में था,
हाँ कुछ इस का भी गुनहगार हूँ मैं|

ज़िन्दगी क्या है गुनाह-ए-आदम,
ज़िन्दगी है तो गुनहगार हूँ मैं|

मेरी बातों में मसीहाई है,
लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं|

एक लपकता हुआ शोला हूँ मैं,
एक चलती हुई तलवार हूँ मैं|