ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैं|
जिन्स-ए-उल्फ़त का तलबग़ार हूँ मैं|
इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी,
फ़ितना-ए-अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं|
छेड़ती है जिसे मिज़राब-ए-अलम,
साज़-ए-फ़ितरत का वही तार हूँ मैं|
ऐब जो हाफ़िज़-ओ-ख़य्याम में था,
हाँ कुछ इस का भी गुनहगार हूँ मैं|
ज़िन्दगी क्या है गुनाह-ए-आदम,
ज़िन्दगी है तो गुनहगार हूँ मैं|
मेरी बातों में मसीहाई है,
लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं|
एक लपकता हुआ शोला हूँ मैं,
एक चलती हुई तलवार हूँ मैं|