देश-देश में बन्धु होंगे
पर बहुएँ नहीं होंगी
(राम की साखी के बावजूद);
किसी देश में बहू मिल जाएगी
जहाँ बन्धु कोई नहीं होगा।
किसी की जगह
कोई नहीं लेता :
यह तर्क भी
दर्शन की जगह नहीं लेगा,
क्यों नहीं मैं ही
अपनी जगह दूसरा
व्यक्तित्व खोज लेता?
नयी दिल्ली, अगस्त, 1968