Last modified on 20 जुलाई 2014, at 04:25

तकलीफ़ / लाल्टू

मैं
ऐसे किसी भी ख़ुदा को मानने को
तैयार हूँ

जो
एक रोते बच्चे को हँसा दे

वे
कैसे लोग होते हैं

जिन्हें
बच्चों की किलकारियाँ शोर
लगती हैं

ए० सी० की मशीनी धड़धड़ में सोते हैं
खर्राटे मारते

और
बच्चे के उल्लास से परेशान
होते हैं

दुनिया के हर बच्चे से कहता
हूँ कि हमारी मत मानो


आ कर दाढ़ी खींचो हमारी

और
अपनी राहों पर चल पड़ो ।

कुत्तों के पिल्लों और सूअर
के बच्चों से भी
तकरीबन
यही कहना है

तकलीफ़ यह कि मुझे उनकी भाषा
नहीं आती ।