दुखों के ख़ेमे में बैठ कर
ना-रसा ख़ुशी की ख़ुशी में हँसना
तवील ओ अंजान हिज्र की ख़ार-ज़ार पगडंडियों पे चलते
विसाल लम्हों की ख़ुशबुओं में रची
कोई नज़्म कह के रोना
हवास की दस्तरस में होना
कभी न होना
इन्हीं तज़ादों से ज़ात के हाथ की लकीरों में रम्ज़-ए-मआनी
इन्ही पे क़ाएम मिरे तफ़क्कुर के सिलसिले सब
कलाम ओ हुस्न-ए-कलाम के ढब