Last modified on 10 जनवरी 2010, at 20:52

तज़्ब्जुब / शीन काफ़ निज़ाम

सच बताओ
जो किताबों में लिखा है
क्या वो तुमने ही कहा है
जब अज़ीयत ज़िस्म से रिसने लगेगी
जब दुआ के उठने वाले हाथ
शल होने लगेंगे
और शल होते हुए हाथों को
काट डाला जाएगा शानों से मेरे
जब सीना की सौत
फूँक डालेगी लबों को
आरजू में आबलों सी आँखें
नेजे फोड़ देंगे
और गला बंज़र ज़मीं सा
कुछ न देगा हाथ में आवाज़ के तो
काट डालेगा कोई सर धड़ से मेरा
तुम सिमट कर रंगों बू में
ख़ाको खूं में
सूर फूँकोगे हवा में
'कुन' कहोगे
क्या तुम्हारा ही कहा है
जो किताबों में लिखा है
सच बताओ