Last modified on 16 अप्रैल 2018, at 18:05

तट / सुनीता जैन

सागर के निर्जन
तट पर,
वर्ष हुए यों चलते-
चलते,
कल जाने कैसे
कौंधी सूरज की किरणें
या उछल फेन से
सीपी,
आई किरणों से मिलने

पर सच कहती हूँ
एक हथेली से जो
की हथेली बंद है
मोती है उसके अंदर
कहीं कदम्ब की
गंध है