Last modified on 8 नवम्बर 2010, at 01:06

तन की हवस / गोपालदास "नीरज"

तन की हवस मन को गुनाहगार बना देती है
बाग के बाग़ को बीमार बना देती है
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो
भूख इन्सान को गद्दार बना देती है