तपते टिलों पर
दूर कहीं पानी की झलक
पथराती आंखों में कौंधी ललक
टूट रहा था अंग-अंग
फिर भी भरी कुलांच
लेकिन यह जल
था केवल छल
इस सच से टकराते ही
गिरा वही ‘ताड़ाछ’ खाकर
तपते टीलों पर
आग बरसाते सूरज के नीचे……
तपते टिलों पर
दूर कहीं पानी की झलक
पथराती आंखों में कौंधी ललक
टूट रहा था अंग-अंग
फिर भी भरी कुलांच
लेकिन यह जल
था केवल छल
इस सच से टकराते ही
गिरा वही ‘ताड़ाछ’ खाकर
तपते टीलों पर
आग बरसाते सूरज के नीचे……