Last modified on 14 मई 2014, at 21:42

तपसी- 1 / राजेन्द्र जोशी

फर फरी मूछें
माथे पर साफा
कोरपाण धोती
हाथ में घड़ी
दूसरे में छड़ी
सौम्य स्वभाव
कहां गये तपसी?
मैं उनकों देखना चाहता हूँ
उस चरित्र से मिलना चाहता हूँ
सारा शहर उनसे मिलता था
जो उनसे पढ़ता था
किस्से बंयाँ करता है!
याद है
उनकी गोद में बैठकर
उनकी मूछों से
अपना माथा
चिपकाता
छड़ी को दौड़ाता
हॉकी की तरह
फिर खेल-खेल में ही
पेन-पेसिंल ज्यू थाम
दो और दो चार चलाता!