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तब आना तुम / सुनीता जैन

मैं तुमको क्या कह दूँ
जब मैं ही अपने में,
गिरे हुए पत्ते-सा, झंझा में,
टिकती नहीं कहीं भी

मैं जब अपने को
अपने में पा लूँगी,
खड़े कुमुद-सा पानी में
सूरज से पाँख नहा लूँगी,
हाथों से तर्पण कर
गंध निज कोर बसा लूँगी

तब आना तुम कविता
मैं खिल, पराग-सा तुमको
अपनी हर पोर अँजा लूँगी