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तब जाकर बचपन छूटेगा / स्वाति मेलकानी

प्लेटफार्म में
पानी की बोतलें बेचता बच्चा
भरी बोतल देने
औैर
खाली उठाने के बीच
पकौड़ी बेचता
झाड़ू लगाता
कूड़ा बीनता
भीख माँगता
पिटता
पीटता
रोता
चीखता
छोड़ रहा है अपना बचपन
स्टेशन पर
फुटपाथ में
सड़क किनारे
और नालियों में भी
भरी और खाली बोतल का भेद मिटाता
दोनों से ही
गोल-गोल
रोटी वाला खेल खेलता
जीने की जुर्रत करता है।
क्या जाने वह
कभी-कभी हँसता भी होगा।
पूरे चौदह साल लगेंगे
तब जाकर बचपन छूटेगा।
अब भी थोड़ा समय बचा है।
बचपन पूरा करने की शर्तें बाकी हैं।