तब भी था समुद्र
इतना ही अगाध
इतना ही अनन्त
कि दूर-दूर ऊँची उड़ान भर
लौट आता था वह थका-हारा
पुनि-पुनि उस जहाज पर
जो अब अगर है भी कहीं तो
गहरे-बहुत गहरे।
अब केवल खारे पानी का
यह अपार विस्तार है
और पाखी
ढूँढ़ता है ठौर कोई
दूर-दूर भरता उड़ानें
लगाता चक्कर
एक चक्कर और
चक्कर और चक्कर
और चक्कर
(1981)