तब मैं
पेड़ और पहाड़ से भी
अधिक ऊँचा
अंतरिक्ष तक पहुँच जाता हूँ
अपना घर अपना जग
सिर पर उठाए अपने
खड़ा हो जाता हूँ दृढ़
कि आया महासागर
घुटनों तक ही पहुँच पाएगा मेरे।
रचनाकाल: १८-०९-१९७६, मद्रास
तब मैं
पेड़ और पहाड़ से भी
अधिक ऊँचा
अंतरिक्ष तक पहुँच जाता हूँ
अपना घर अपना जग
सिर पर उठाए अपने
खड़ा हो जाता हूँ दृढ़
कि आया महासागर
घुटनों तक ही पहुँच पाएगा मेरे।
रचनाकाल: १८-०९-१९७६, मद्रास