तमाम उम्र वो चर्चाओं में ख़बर में रहा,
न की ख़तायें मगर फिर भी एक डर में रहा।
कभी कभी तो वो अजनबी सा लगता है,
जो सारी उम्र मेरे साथ मेरे घर में रहा।
मैं ढूँढ़ती ही रही उसको सारी दुनिया में,
मेरा वो इश्क़ तो मेरे ही चश्मे-तर में रहा।
भुलाती कैसे भला उस को मैं कभी दिल से,
हरेक लम्हा जो इन साँसों के सफर में रहा।
पहुँच सका न कभी दिल तुम्हारी मंजिल तक,
तमाम उम्र ये जानां मगर डगर में रहा।