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तरक़ीब / रुस्तम

दवंगरा रोज़ एक छोटे, मरियल कुत्ते को कुछ खिलाती है,
शाम को जब वह दफ़्तर से लौटती है।

वह अकेला ही होता है — मैंने कभी उसको अन्य कुत्तों के साथ नहीं देखा।

शुरू में वह उससे डरता था, उससे परे भागता था, तब भी जब वह उसे खाने को कुछ देती थी।

फिर दवंगरा ने तरक़ीब निकाली।

वह खाना रखकर दूर चली जाती थी, और जब वह मुड़कर देखती थी वह खा रहा होता था।

अब वह उसे देखते ही उसके साथ चलने लगता है और खाने के लिए अपने-आप कुछ माँगता है।

हर जीव को कुछ प्रेम, कुछ स्नेह चाहिए होता है,
और साथ में कुछ खाने को।

मात्र प्रेम और स्नेह से पेट नहीं भरता।