ईश्वर ने उसे बच्चा नहीं दिया
बच्चे के लिए झॉंकती थी वह
सारी पृथ्वी और आकाश
लेकिन कहीं कोई चीख नहीं
कहीं कोई पुकार नहीं
याद आते थे उसे
पालने में झूलते हुए भगवान
खेतों से लहलहाकर उठते हुए बीज
बादलों से फूटकर बरसता हुआ पानी
सब कुछ जैसे ओस की बूंद की तरह
दो पल ठहरता था
उसकी नजरों के आगे
और अभी आया-अभी आया
कहकर चला जाता था दूर
फिर वह अकेली
रेगिस्तान की रेत की तरह
ढूढ़ती रह जाती थी पानी
पानी-पानी-पानी
कौन खेल रहा है उससे
कहॉं है वह
किसने छुपा रखा है उसके हिस्से का पानी
और सोचते-सोचते
पसीने की दो-चार बूँदें
वापस लौट आती थीं
उसके माथे पर
जो देखते-देखते
लुढक़ जाती थीं
ढलान पर
मिट्टी की गोद में
जहां लाखों गर्मी के कण
टूट पड़ते थे उसे खाने के लिए ।