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तलाश / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

मारग में था चला जा रहा, वृद्ध एक बेचारा।
झुकी कमर, कर बीच लकुटिया, तन जर्जर था सारा॥
देख किसी ने पूछा बाबा बोलो ध्यान किधर है?
झुके-झुके जाते हो क्यों धरती में गड़ी नजर है?
कौन वस्तु खो गई जिसे तुम खोज रहे बेकल से?
क्या कोई अनमोल रत्न गिर पड़ा छूट आँचल से?
कहा वृद्ध ने मत पूछो तुम मेरी राम कहानी।
खो बैठा हूँ मैं अपनी मस्ती से भरी जवानी॥
खोज रहा हूँ कब से उसको प्राप्त न मैं कर पाया।
कोई मुझे बता दे यौवन मेरा कहाँ समाया॥
उत्तर सुन हँस दिया तनिक-सा प्रश्न पूछने वाला।
आगे को चल पड़ा वृद्ध भी जपता अपनी माला॥