फिर वही माँगे हुए लम्हे, फिर वही जाम-ए-शराब
फिर वही तारीक रातों में ख़याल-ए-माहताब
फिर वही तारों की पेशानी पे रंग-ए-लाज़वाल
फिर वही भूली हुई बातों का धुंधला-सा ख़याल
फिर वो आँखें भीगी भीगी दामन-ए-शब में उदास
फिर वो उम्मीदों के मदफ़न<ref>मक़बरा, समाधि</ref> ज़िंदगी के आस-पास
फिर वही फ़र्दा<ref>आने वाला कल, भविष्य</ref> की बातें फिर वही मीठे सराब<ref>भ्रम</ref>
फिर वही बेदार<ref>निद्राविहीन</ref> आँखें फिर वही बेदार ख़्वाब
फिर वही वारफ़्तगी<ref>ख़ुद अपने आप में खोया हुआ</ref> तन्हाई अफ़सानों का खेल
फिर वही रुख़्सार वो आग़ोश वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह
फिर वही शहर-ए-तमन्ना फिर वही तारीक राह
ज़िन्दगी की बेबसी उफ़्फ़ वक़्त के तारीक जाल
दर्द भी छिनने लगा उम्मीद भी छिनने लगी
मुझ से मेरी आरज़ू-ए-दीद भी छिनने लगी
फिर वही तारीक<ref>काला, अँधेरा</ref> माज़ी फिर वही बेकैफ़<ref>उमंगहीन, जीवनहीन</ref> हाल
फिर वही बेसोज़ लम्हें फिर वही जाम-ए-शराब
फिर वही तारीक रातों में ख़याल-ए-माहताब
उर्दू से लिप्यंतर : लीना नियाज