तुमने क्यों सुनी आत्मा की चीत्कार
तुम्हे छोड़ना नहीं पड़ता
रगों में बहता
अपना सुनहला देश
यहाँ कितने लोगो की आई लाज
अपनी ख़ामोशी पर
मुझे नहीं मिला कोई भी दोस्त
जिसने तुम्हारे आत्मघाती प्रेम पर
की हो कोई बात
मै हूँ स्वयं भी जलावतन
और लज्जित भी
कि तुम्हारे लिए कर नहीं सका
मै भी कुछ