कुछ कुछ हवा
और कुछ
मेरा अपना पागलपन
जो तस्वीर बनाई
उसने
तोड़ दिया दर्पन।
जो मैं कभी नहीं था
वह भी
दुनिया ने पढ़ डाला
जिस सूरज को अर्घ्य चढ़ाए
वह भी निकला काला
हाथ लगीं- टूटी तस्वीरें
बिखरे हुए सपन!
तन हो गया
तपोवन जैसा
मन
गंगा की धारा
डूब गए सब काबा-काशी
किसका करूँ सहारा
किस तीरथ
अब तरने जाऊँ?
किसका करूँ भजन?
जो तस्वीर...