जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नहीं पहुंचा ।
जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नहीं पहुंचा ।। --काज़िम जरवली
जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नहीं पहुंचा ।
जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नहीं पहुंचा ।। --काज़िम जरवली