Last modified on 26 अक्टूबर 2013, at 13:21

तहखानों तक / हरकीरत हकीर

कोई ठंडी हवा का झोंका
आधी रात मेरे लहू में
अक्षर - अक्षर हो …
लिख जाता है किताब
कभी तो आ …
दिल के तहखानों तक
जिसकी टूटी सतरें जोड़
कोई नज़्म बना सकें …