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ताकि तब तक / ओमप्रकाश सारस्वत

संकरी गलियों का
दमघोटू कसैला धूम
पहर भर में
शहर भर में
फैल जाएगा
शहर में एक और धूम-देश
घुस आएगा
फिर ह्र्दय की उदारता के
मायने क्या?

ह्र्दय बस चीखता है
स्नेह-हीन मशीन-सा
देह अब कोई धर्म स्वीकारती नहीं
मात्र पशुपन के
फिर आत्मा न जाने क्यों पड़ी है पीछे
कई जन्मों से, पीछा छोड़ती ही नहीं

मैं त्रस्त हूं
अपने पराये से
इसलिए ओ क्लैंडरों के वाचकों!
गणितिज्ञ सत्पुरुषों ! बताना कि
कौन सा दिन, तिथि
अपने महामरण की है