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ताड़ काटूँ, तरकुन काटूँ / अमरेन्द्र

ताड़ काटूँ तरकुन काटूँ काटूँ रे वनखाजा
हाथी पर जों घुंघरू ठुमुक चले राजा

ठाठोॅ मेॅ चिरैया चहकै, मन मेॅ सौ-सौ फोड़ा टहकै
घोल्टू के जे बाबू गेलै, आबेॅॅ तेॅ दू बरखा भेलै
जब, सें शहरोॅ मेॅ गेलोॅॅ छै, चिट्ठी एक्को नै देलोॅॅ छै
हेनोॅ की निठुराई अच्छा, नौकरी सें तेॅ भलोॅ भिच्छा
सूनोॅ -सूनोॅ घोॅॅर लगै छै, मन मेॅ सौ फोड़ा टहकै छै
घर-धंधा मेॅ की मोॅन की लागतै, रात कटै छै हमरोॅ जागतै
खाली असगुन रही-रही आवै, केना नै ई मन घबरावै
अइये लिखवै चिट्ठी, कबतक सुनवै सबके ताना।

प्राणनाथ बस ई जानै छी, आशिख पावै लेॅॅ तरसै छी
चिंता नै तोहें कुछ करिहोॅ, ठिक्के छी, तोहें नै डरिहोॅॅ
घोल्टू नें इन्तहान जे देलकौं, दूसरी अबकी पास करलकौं
हाल-चाल सबके अच्छा छै, देवर झगड़े छौं; बच्चा छै
दादा परसू ही ऐलोॅ छौं, तोहें आवोॅ, ई कहलेॅ छौं
समझाना छै की केकरा केॅ, झगड़ा चलथौं बस लै दै केॅ
खेतोॅ के झगड़ा में अबकी, तोहें नै अइहोॅ कैन्हें कि
मंगवैलोॅ छौं लाठी-भाला, फरसा आरो गड़ासा ।

गाँमोॅ के पीरतिया खातिर, देवर रहै छौं बाहिर-बाहिर
गाँव-टोला में कानाफूसी, कहवै केकरा सें कहोॅॅ की
ललचनमाँ-कैलू के संग मेॅ, हिनियो रंगलोॅ छौं वही रंग मेॅ
डाँटोॅ तेॅॅ गलथोथरी करथौं, बचलोॅ इज्जत आबेॅॅ जैथौं
हीरोइन के की माने छै ? सबकेॅ ऊ यहा बोलै छै
मुश्किल छै लड़की के चलना, सीटी मारे छौं फुलचनमा
मनोॅ के ई बात कहै छी, हरदम्में डरलोॅ रहै छी
हाथ कभी पकड़ी केॅ छूथौं, हमरोॅ कान के पासा ।

गामोॅ के की हाल सुनैइयौं, केकरोॅ-केकरोॅॅ चाल सुनैइयौं
सिरचन दा, कैदू दा अबकी, दोनों ईलकसन के वक्ती
लड़लौं खून-खराबा भेलौं, गाँवोॅ मेॅ पाटीसन भेलौं
बिकवर्ड-फुरवर्ड, की बोलै छै, समझें मेॅ कुछ नै आवै छै
सबकेॅ सबसें डोॅॅर छै लागलोॅ, सबकेॅ देखभौ रातौ जागलोॅ
गाँमोॅ में की जी लागै छै, मन व्याकुल जेना दागै छै
लिक्खोॅ की कहिया आबै छोॅ, आरो हमरा लै जावै छोॅ
अबकी तेॅॅ हरगिज नै भुलयोॅ- लुंगा-चोली-साया ।