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तापित सूरज / केदारनाथ अग्रवाल

तीन दिनों से तपित सूरज बहक रहा है रोज-ब-रोज
दहके आवर्तों में दक्षिण दहक रहा है रोज-ब-रोज
म्लान हुआ मदरासी मुखड़ा, पंखुरियों का रोज-ब-रोज
सुना नहीं जाता है दुखड़ा जलपरियों का रोज-ब-रोज

रचनाकाल: ०५-०५-१९७६, मद्रास