दिवंगता के लिए
लौहमेहफूज : इस्लामी मेटाफिजिक्स के मुताबिक़, आकाश में एक जगह, जहाँ दुनिया में होने वाली सारी घटनाओं का विवरण तो
है लेकिन जिसे कोई बाँच नहीं सकता।
दिन छिपने पर
अंधेरे से बनी अवस्त्रा अपना आँचल डाल देती है
एक सोखना कागज : तामसी
रत्ती तक से रिक्त : घात लगाये
काछ खोलती हँसी वह
जो कुछ कहती
कुछ नहीं वह
वहाँ है तो
गोशा-गोशा : तामसी
चाँप लेती लिखत : सांगोपांग : उलीचती
उच्चार
पुतलियों में, फाँसें। एक साँस और
दिनांक
लीपती है : तामसी
पलकों की सिलाई अधबीच छोड भौंहों में तैरने भागती
छूट जाती नाड़ियों में
फटी पड़ी अन्तसराह
हज़ार पाट हो बहती
अलभ्य : तामसी
बतला सकना कि बाँचना मुमकिन नहीं
यह बिलकुल अबूझ है
तामसी
उसके लोहे को अपना हत्था अगर नहीं दिया होता तो
वह कभी कुल्हाड़ी नहीं बनती
न पेड़ कटता
वहाँ आत्मा का वास था
तामसी
जैसे वह देखती होगी, आसमानी ओसारे से। चुपक चोरनी।
छप्पर पर उपले सुखाती। अजान अक्षर।
क्या वह चुड़ैल है? पृथ्वी। पड़ेगा फेरा फिर से।
क्या वह दिव्य की काया है? कुदरत। कुफ़्र। कायनात।
कोविद अन्यत्र को
आँख देती
तामसी
तत्पुरुष नहीं रहा। रक्त से सना।
जोंक
चूसती नहीं। छप-छप कर चली जाती है
ख़ुशी
क्या औरत है जिसे पाना मर्दानगी का सबूत हो ?
तामसी
पंखुरियाँ, छितराईं। फूल कहीं नहीं।
हर पंखुरी एक फूल है
अपना लो
तामसी
यूँ नथ उतरा जिस्म। काफ़िर
तामसी
उजाला छिपा लेता है
अपने को जाहिर करते अनाकार से छूट
जाती दिखती है
जैसे छाया
तामसी
चारदीवारी लांघते बिला गयी
गैरिक गंभीर। गई है उड़ तितली
वासांसि। बाना बदलती :
मधुमक्खी : मुँह में शहद, पुछल्ले में डंक
बारम्बार
तामसी
काग़ज़ कोरे में लौटती तो
होता यह सारा खेल
छुपछुपा
बरत देखे कौन सगा है किसका
उबलते पानी पर फफोलों जैसे
तो टूट रहे हैं सामने तारे
यह ठीकरा भी माथे ही फोड़ो
चूको मत
तामसी
बरी की बाट जोहते
हाथ को हाथ न सूझे
तलाश-टोह तजती कैसे
तिरोहितपाली में वह
अपात्र का बिछोह अधबना : गलहाँफ :
मेटती न्यारे न्यौते से
तक्षकी छापे : विस्फारित
तामसी
सफ़ेद दिन। संसारी। रुई की तरह धुनता। दाग-दाग दास्तां :
पासा फेंके
अगोत्र चिनता है लगे सूतक को :
वह त्याज्य
जो अगम्य है : कपाल खुलेगा
और अगर कभी नहीं तो कभी नहीं :
इस जन्म में तो इस जन्म में
अगले जन्म में तो अगले जन्म में : एक न एक दिन
कोई फोड़ेगा भी , जब कभी :
गुल्लक : नेतिनामा : एकदा : होनीलेखे का
अत्यल्प। ज़र्रा-ज़र्रा
तासीर-तिक्त तीर्थ
तामसी
अगर देख सको तो दिवंगता
बिना जाना-बीनना जिस जैसा
अनामय : ध्याताचाप
साखी
सकलसूत्र इस भाग में
तामसी