है दिल में मेरे याद जो बारह इमाम<ref>नेता, पेशवा,नमाज पढ़ाने वाला, बारह इमाम</ref> की।
और आरजू<ref>चाह</ref> है साक़िये कौसर<ref>जन्नत की शराब की नहर</ref> के जाम<ref>शराब का प्याला</ref> की।
यह बैत<ref>काव्य पंक्ति</ref> मुझको विर्द<ref>किसी बात को बार बार कहना या करना</ref> है हर सुबहो शाम की।
तस्बीह<ref>माला</ref> हजार दाना है और उनके नाम की।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन<ref>पांच व्यक्ति अर्थात हज़रत मुहम्मद, हज़रत फ़ातिमा, हज़रत अली और उनके दोनों पुत्र इमाम हसन और इमाम हुसैन</ref> के नाम की॥1॥
अव्वल तो दिल हो साफ़ दोयम<ref>दूसरे</ref> जिस्म<ref>शरीर</ref> ताबनाक<ref>रोशन, चमकदार</ref>।
सोयम<ref>तीसरे</ref> कहाऊं दोनों जहां में गुनाह से पाक।
चौथे अदद का गै़ब<ref>परोक्ष</ref> से हो जावे सीना चाक<ref>फटा हुआ</ref>।
और पांचवीं मैं डालूं मुख़ालिफ़<ref>विरोधी</ref> के सर पे ख़ाक।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥2॥
तन है सौ पाक साफ़ मुअत्तर<ref>खुशबूदार</ref> हो मिस्ल फूल<ref>फूल की तरह</ref>।
हो रूह<ref>आत्मा</ref> शाद<ref>प्रसन्न</ref> दिल न हो मेरा कभी मलूल<ref>रंजीदा, उदास</ref>।
दोनों जहाँ में ख़ुश रहूं अज़<ref>से</ref> खि़दमते रसूल।
रोजा, नमाज़, विर्दो वज़ाइफ़<ref>वजीफ़ा, किसी मंत्र या कु़रान शरीफ़ के वाक्य का जाप</ref> हो सब क़ुबूल।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥3॥
भागे चुड़ैल कांप उठे भूत और पलीद<ref>नापाक, अपवित्र प्रेत</ref>।
टल जावें देव छुपने लगें मुन्किरे<ref>इंकार करने वाला</ref> शदीद<ref>सख़्त</ref>।
जिन्नों परी हों दिल से मेरे आन कर मुरीद<ref>शिष्य, आध्यात्मिक शिष्य</ref>।
जीता रहूं तो शाह, जो मर जाऊँ तो शहीद<ref>जो खु़दा की राह में बलिदान हुआ हो</ref>।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥4॥
नारा करूं जो हैदरी हिल जावें सब पहाड़।
थर्रावें चश्मए सार हिलें डर से बूटे झाड़।
गर ख़ारिजी<ref>जो हलके से निकल गए हों</ref> हो आवे मेरे आगे मिस्ल ताड़।
पगड़ी को इसकी फेंक के दाढ़ी को लूँ उखाड़॥
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥5॥
ऐ दोस्तो अजब है बना पंजतन का नाम।
जिसके तुफ़ैल इतने बर<ref>फल, पूर्ति</ref> आते हैं सब के काम।
जो हैं सो हैं यही ख़तमुलखै़र<ref>ठीक से समाप्ति</ref> वस्सलाम।
और मैं जो हूं ”नज़ीर“ तो कहता हूं सुबहो शाम।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥6॥