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तारे / दिनेश कुमार शुक्ल

तारों !
अब तुम गंभीर रहना
अब फिर न झिलमिलाना
उस तरह
जैसे खिलखिलाती हैं लड़कियाँ

झिलमिलाये
तो
शहर को प्रतिबिंवित करती छोटी सी
झील सा
दिखने लगेगा आकाश

लगेगा कि
रात ने सलमा सितारों की
ओढ़नी अब इस उमर में
आज फिर ओढ़ ली है
हंसी-हंसी में

वैसे
अच्छा लगता है अगर
रात भी हंसे, या आकाश भी दिखे झील सा

बहुत दिनों बाद खुल कर
हंस रही है रात
खूब झिलमिला रहे हैं तारे
और हवा तेज-तेज
बहने लगी है,

रात की ओढ़नी उड़ रही है तो
और भी झिलमिला रहे हैं तारे
आकाश में अमृत की छोटी सी
झील तरंगित हो रही है

एक अधेड़ स्त्री
आनन्द में
नाच रही है यहाँ धरती पर।