Last modified on 3 सितम्बर 2008, at 20:31

तारे और नभ / महेन्द्र भटनागर


तुम पर नभ ने अभिमान किया !
नव-मोती-सी छवि को लख कर
अपने उर का शृंगार किया,
फूलों-सा कोमल पाकर ही
अपने प्राणों का हार किया,
कुल-दीप समझ निज स्नेह ढाल
तुमको प्रतिपल द्युतिमान किया !
तुम पर नभ ने अभिमान किया !
सुषमा, सुन्दरता, पावनता
की तुमको लघुमूर्ति समझकर,
निर्मलता, कोमलता का उर
में अनुमान लगाकर दृढ़तर,
एकाकी हत भाग्य दशा पर
जिसने सुख का मधु गान किया !
तुम पर नभ ने अभिमान किया !