पवन शाम बीतने पर बँसवारी में छिप कर आता है बाँसुरी बजाता है रुक रुक कर बाँसुरी बजाता है नीम के फूलों की हरी भरी सुगंध पिए रात मौन रहती है बाँसुरी की तान सुना करती है तारे चुपचाप देखा करते हैं पृथ्वी को राहें उदास देखती हैं आकाश को !